मंगलवार, 25 मई 2010

ये ऊचे ऊचे महल

ये ऊचे ऊचे महल
आशियाना हें उनका
जिनकी दीवारों पर टंगे हें डरावने चहेरे
सूना हें इन घरो का आलम
कभी कभी पडोसी के घरो में किसी के रोने की आवाजे
दब जाती हें
इनके पश्चिमी गीतों में
भरी दोपहरी में नया क़त्ल
कोई मानवता का गला दबाता चला जाता हें
कही गालिओ में दुबका कोई
किसी की बाहों में मरियादा को तोड़ जाता हें
बात सिधान्तो की टूटती हें इन महलो में
धुवे, और जाम, के आलम में कोई युवा
कभी इन महलो की कहानी कह जाता हें
ह्रदय  नहीं इन महलो में
अपने आश्रितों की राहों को तकते इन बुडे  शरीर को
कोई भूखा चाकू की नोक पर चिर निद्रा सुला जाता हें

सोमवार, 24 मई 2010

आखिर कब तक एसा होगा

आखिर कब बदलेगी ये सोच, आज भी आजादी के 62 साल बाद भी, खुल कर जीने का अधिकार कहा हे, आज भी बस्तियों की बस्तिया जलायी जाती हे, खुले आम इज्जत से खेला जाता हे, आज भी वह आपनी शादी को अपने ढंग से नहीं कर सकता हें, आज भी कहीं कहीं उसे चोपाल से दूर बिठाया जाता हें अधिकार नहीं हें उसे गाव के भीच मंदिर में सबके साथ जाने का ... आखिर कब तक... कोन जिम्मेदार हें इन सबका,
उदयपुर सबकी शान, राजस्थान की पहचान... इसी उदयपुर में कानोड़ जिले के अरनिया गाव में कुछ लोगो ने एक दलित परिवार की शादी में घोड़े पर बारात नहीं निकलने पर नतीजे आच्छे नहीं होगे व भुगतना पड़ेगा एसी धमकी दी तो उस मेघवाल परिवार को पुलिस की शरण में जाना पड़ा, ये किस्सा केवल उदयपुर का नहीं हें, उत्तर प्रदेश, हो या बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, सब जगह कभी न कभी दलित को किसी न किसी बहाने सताया जाता हें, आखिर इन सब के पिच्छे काफी जायदा मात्र में खुद वह दलित जिम्मेदार हें वह खुद अपने दलित समाज से आगे बढना नहीं चाहता हें, उसे अपने आपको दलित कहलाने में मजा आता हें, दलित होने के नाम पर सुविधा मांगता हें, अपने दलित समाज में लड़की का विवाह यह कहते नहीं करता हें की वह हमसे निचा हें, अरे तुम खुद आपस में एक दुसरे को छोटा बड़ा समझते हो फिर दुसरो को कहते हो, वह तुम्हरे साथ अत्याचार कर रहा हें, तुम खुद भी अपने दलित समाज में एक दुसरे पर अत्याचार कर रहे हो, पहले अपने आपको बदलो, तुम को तो बाहर दुसरो में शामिल होने में शर्म आती हें, तुमको आपसे में आज भी दलित बस्ती बना कर रहने की आदत हें, अपने समाज से बाहर संबंद नहीं बनाते हो , यदि आपका लड़का किसी उच्च जाति में विवाह कर लेता हें तो आप उसे जात बाहर कर देते हो, यदि आपकी लड़की किसी दूसरी जाति में विवाह करती ये तो आप उससे रिश्ता खत्म कर लेते हो, अरे बेटी को गले लगाओ , बेटे बहु का स्वागत करो, अरे जब आपको इतनी सुविधा मिल रही हें तो आप अपने बेटे / बेटी को अच्छी शिक्षा क्यों नहीं देते हो, और जब आपकी सरकारी नोकरी लग जाती हें , उचे पद पर बेठ जाते हो तब क्यों आर्क्सन की मांग करते हो, तब तुम क्यों नहीं सविधान में संशोधन की मांग करते हो, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए में दलित नहीं हूँ, दलित का मतलब गरीबी हें जाति नहीं हें , मगर तुमने तो दलित का मतलब जाति को बना लिया हें , अपने आपको ताकतवर बनाओ देखो कोई तुमको दलित नहीं कहेगा, आपस में पहले एक हो जाओ ---

शुक्रवार, 21 मई 2010

भ्रूण हत्या

बंद कमरों में चीखे दब कर रह जाती हे
kahin दीपक गिरने से नारी जल जाती हे
कहीं गहरी नींद में सोई, सुबह उठ नहीं पति हे 
आपना पेट भरने को रात के अँधेरे में, अपना 
जिस्म बेच जाती हे
अपने ही घर में अपनों से, अस्मत लुटी जाती हे 
कहीं दहेज की खातिर, कुरता से कटी जाती हे 
किसी की वासना पूरी न होने पर तेजाब में झुलस 
जाती हे 
कहीं वंस न बढाने के नाम पर, दुनिया में कदम रखेने से ही मार दी जाती हे 
क्या यही भारतीय संस्कृति हे
कोन करवा चोथ का व्रत करेगा
कोन कहेगा नारी लक्ष्मी स्वरूप हे किसे कहोगे बेटी बहन और माँ
किसके घर बारात लेकर जाओगे
किसकी डोली में कन्धा लगाओगे
भ्रूण हत्या बंद करो नहीं तो पछताओगे

पानी

हाय रे पानी रे पानी
धुली चेहरे की रंगत
आकाल में पाहाड़ो पर छायी हो वीरानी 
दिखे सूरत तेरी डरावनी
लिपस्टिक एसे बिखरी हे 
जेसे रक्त पीकर निकली हो शेतन की नानी
हाय रे पानी रे पानी  
हर गली नुकड़ पर स्कूटर पर किक
मरते छोरा छोरी हांफ राहे हे एसे
जेसे नया नया योगा सिखा दिया हो जेसे
हाय रे पानी रे पानी  

बुधवार, 19 मई 2010

maa ka aanchal

मेरी माँ को समर्पित 
हर दर्द को उठाया, हर गम में मुस्कुराया 
गीले में सारी रात जग कर भी 
ठण्ड से हमको बचाया 
आँखों में आँसू भर कर भी
हमारी ख़ुशी में मुस्कुराया 
खुद भूखे रखकर भी
छाती का लहू श्वेत हमको पिलाया 
हमारी बीमारी में सारी  रात रो कर आँखों में बिताई
थपकी दे दे कर हमको सुलाया  एसी   
पूजनीय देवी को न रुलाना
कुछ भी घट जाये
पर अपनी श्रधा  सेवा इनके प्रति तुम न घटाना 

शनिवार, 15 मई 2010

mandir or madira

ये कैसी हे सोच सायानी
करनी हे कुछ आमदनी
मंदिर और मदिरा दोनों
को शामिल कर दी कैसी कारस्तानी
इन्सान की हे ये कैसी सोच सायानी
धर्म के नाम पर खता हे इन्सान
धर्म के नाम पर पीता हे इन्सान