गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

बाबा की आँखे

उगते सूरज के साथ कंधे पर कुदाल डाले चल पड़ती है बाबा की आँखे
दिन भर सूरज की रोशनी में तपती है बाबा की आँखे
सर्द कपाने वाले मोसम में भी खेतो की मेडो पर भी
खुले बदन नही थकती है बाबा की आँखे
दिल में बस एक ही सपना सजाये म्हणत का दामन थामे
आगे बड़ती जाती है बाबा की आँखे
कभी बाड तो कभी सुखा , तो कभी पाला
अरमानो की होली जला जाता है, तब रोटी है बाबा की आँखे
मुझे अंगुली पकड़कर कर चलना सिखाया
हर कदम पर मुझे आगे बढाया, हर गम में भी मुस्करायी बाबा की आँखे
आज मेरे भाग्य से जुड़ी है बाबा की आँखे ...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें