गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

बेमिसाल

जूझता है मानव ,
निकलती है चिंगारी
बदते है कदम ,
तो मिलाती है डगर
पाई जीन्हाने मंजील
सफर उनके नही थे खामोश
जूनून सरफरोशी के बांधे
चलते चले ओढे तन पर कफन

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