चुनाव की रंगत निराली
कुर्शी की महिमा हे बड़ी निराली
गिराने उठाने अपना मतलब साधने मै लगी पार्टिया सारी
जूठे दाव पेच मै उलझी जनता बेचारी
इन नेताओ ने खूब चली चल सायानी
खड़ोको भरवा दिया पानी पर सड़क को बनवा दिया
खम्बो पर तार टंगवा दिया दुर्घटना होने लगी भारी
चुनाव की रंगत निराली
जो पूर्णिमा के चाँद थे
वे बोलने लगे मुर्गे की बांग पायरी
चुनाव की रंगत निराली
वोट की खातिर करते ये करामत भारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें