शुक्रवार, 21 मई 2010

भ्रूण हत्या

बंद कमरों में चीखे दब कर रह जाती हे
kahin दीपक गिरने से नारी जल जाती हे
कहीं गहरी नींद में सोई, सुबह उठ नहीं पति हे 
आपना पेट भरने को रात के अँधेरे में, अपना 
जिस्म बेच जाती हे
अपने ही घर में अपनों से, अस्मत लुटी जाती हे 
कहीं दहेज की खातिर, कुरता से कटी जाती हे 
किसी की वासना पूरी न होने पर तेजाब में झुलस 
जाती हे 
कहीं वंस न बढाने के नाम पर, दुनिया में कदम रखेने से ही मार दी जाती हे 
क्या यही भारतीय संस्कृति हे
कोन करवा चोथ का व्रत करेगा
कोन कहेगा नारी लक्ष्मी स्वरूप हे किसे कहोगे बेटी बहन और माँ
किसके घर बारात लेकर जाओगे
किसकी डोली में कन्धा लगाओगे
भ्रूण हत्या बंद करो नहीं तो पछताओगे

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