मंगलवार, 25 मई 2010

ये ऊचे ऊचे महल

ये ऊचे ऊचे महल
आशियाना हें उनका
जिनकी दीवारों पर टंगे हें डरावने चहेरे
सूना हें इन घरो का आलम
कभी कभी पडोसी के घरो में किसी के रोने की आवाजे
दब जाती हें
इनके पश्चिमी गीतों में
भरी दोपहरी में नया क़त्ल
कोई मानवता का गला दबाता चला जाता हें
कही गालिओ में दुबका कोई
किसी की बाहों में मरियादा को तोड़ जाता हें
बात सिधान्तो की टूटती हें इन महलो में
धुवे, और जाम, के आलम में कोई युवा
कभी इन महलो की कहानी कह जाता हें
ह्रदय  नहीं इन महलो में
अपने आश्रितों की राहों को तकते इन बुडे  शरीर को
कोई भूखा चाकू की नोक पर चिर निद्रा सुला जाता हें

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